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ठगिनी और व्यापारी भाग-3

    भाग-3

यशवर्धन निराश हो जाता है. उसे ब्राह्मण पुत्र पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसने उसे कोई अच्छी कहानी कहने की बजाय उसे ऐसे ही एक कथन कह दिया. उसे मनोरंजन की आवश्यकता थी लेकिन ब्राह्मण पुत्र ने उसका मनोरंजन भी नहीं किया और उससे सोने का सिक्का भी ले लिया. दोनों दोस्त ऐसे ही बिना रुके कुछ दूर चलते हैं. ब्राह्मण पुत्र लगातार तेज गति से आगे बढ़ रहा था तो वही व्यापारी पुत्र को चलने में तकलीफ हो रही थी. अचानक कुछ दूर चलने के बाद व्यापारी पुत्र यशवर्धन ने श्रीदत से कहा- दोस्त कोई कहानी सुना दो.. सफ़र कट जाएगा.
श्रीदत- मैंने तुम्हे पहले ही कह दिया था की मेरे पास बस कुछ कथन हैं जो की कहानियों से भी ज्यादा अनमोल हैं. तुम्हारे जीवन में काम आएगे. तुम कहो तो सुनाऊं.
यश- हाँ! सुनाओ.
श्रीदत ने स्वार्थता वाली मुस्कराहट मुस्कुराते हुए कहा- हाँ! क्यों नहीं लेकिन बदले में एक सोने का सिक्का लगेगा. मजूर है तो बोलो.
यश- नहीं है मुझे मंजूर..
श्रीदत- ठीक है अगर मंजूर नहीं है तो चलो फिर ऐसे ही..
यश- दोस्त क्यों तकलीफ दे रहे हो? सुना दो ना.
श्रीदत- देखो दोस्त तुम्हे पता है की मैं गरीब आदमी हूँ. जब अकाल पड़ा हुआ हो तो तुम्हारे पिताजी क्या धान का मूल्य वही रखते हैं जो की बारिश वाले वर्ष में होते हैं?
यश- ये क्या बात हुई? तुम्हारी कहानी का हमारे व्यवसाय से क्या मतलब?
श्रीदत- मतलब है दोस्त. जब तुम्हारे पिताजी अकाल वाले साल धान का मूल्य कम नहीं करते तो फिर मैं इस वक्त क्यों कम करूँ? जिस तरह से तुम्हारे पिताजी धान का मूल्य समय को देखकर बढ़ा देते हैं ठीक वैसे ही मैंने भी अपने कथनों का मूल्य समय को देखकर बढ़ा दिया है. अब तुम चाहे गलत समझो या सही. लेकिन मैं भी वही कर रहा हूँ जो बाकी के लोग इस दुनिया में करते हैं.
यश- अच्छा तो ये बात है. फिर मुझे नहीं सुनना कोई कथन मैं ऐसे ही चल लूँगा.
श्रीदत- ठीक है दोस्त जैसी तुम्हारी मर्जी.
ऐसा कहकर श्रीदत अपने कदमो की रफ़्तार बढ़ा देता है. उसे पता था की यशवर्धन जरुर उसे कथन या कहानी सुनाने को बोलेगा. वे दोनों जैसे ही कुछ दूर चलते हैं. यशवर्धन पीछे से आवाज देते हुए कहता है- दोस्त, मुझे वो कथन सुना दो..
श्रीदत- हाँ जरुर दोस्त. लेकिन पहले मुझे तुम वो सोने का सिक्का दो.
यश सोने का सिक्का निकालते हुए कहता है- ये लो.. अब तो सुना दो.
श्रीदत सोने का सिक्का लेते हुए कहता है- ठीक है तो सुनो, तुम जब भी किसी अनजान के घर मेहमान बनकर रहो और जब तुम्हे शाम को खाना परोसा जाए तो तुम पहला निवाला खाने से पूर्व किसी कुत्ते या बिल्ली को खिला देना..
यश- ऐसा क्यों?
श्रीदत- ऐसा इस लिए क्योंकि शास्त्रों में भी कहा गया है की पहला निवाला स्वयं को खाने की बजाय किसी जीव को खिलाना चाहिए इससे पुन्य मिलता है.
यश- अच्छा तो ये बात थी और तुमने इस बात के लिए मुझसे एक सोने का सिक्का ले लिया.
श्रीदत- तुम इस बात को भूलना मत जिंदगी में कभी भी. आज तुम्हे यह छोटी सी लगे लेकिन आगे चलकर शायद तुम्हारे काम आ जाए, चलो अब आगे बढ़ते हैं.
यशवर्धन को श्रीदत पर गुस्सा आ रहा था लेकिन वह भला कर भी क्या सकता था. उसके साथ दो बार धोखा हो चुका था. वे दोनों कुछ ही दूर बढ़ते हैं की पीछे से यशवर्धन ने श्रीदत को आवाज देते हुए कहा- दोस्त अब मैं थक गया हूँ और दोपहर भी होने वाली है क्यों न हम थोड़े समय के लिए रुक जाएं.?
श्रीदत- नहीं दोस्त, अभी हमें सहारनपुर का जंगल भी पार करना है जहाँ बहुत सारे शेर रहते हैं अगर दिन में हमने उस जंगल को पार नहीं किया तो फिर हम मारे जाएंगे. इस लिए अभी नहीं रुक सकते.
यश- लेकिन दोस्त मैं थक चुका हूँ.
श्रीदत- तो मैं क्या करूँ इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं है.
यश- देखो दोस्त तुमने मेरे पहले ही दो सोने के सिक्के तो ले लिए हैं. लेकिन तुम्ने बस मुझे सिर्फ दो बेमतलब के कथन सुनाए हैं. किन्तु अब तो मुझे कोई कहानी सुना दो.
श्रीदत- नहीं दोस्त मुझे आज कोई कहानी नहीं आती है.
श्रीदत के ऐसा कहते ही यशवर्धन शांत हो जाता है. वह कुछ देर तक नहीं बोलता है. आखिरकार वह जैसे ही थक जाता है तो अपना सोने का सिक्का निकालता है और मजबूर होकर श्रीदत की तरफ बढाते हुए कहता है- ये लो दोस्त सोने का सिक्का और मुझे कोई कथन या कहानी सुना दो लेकिन अबकी बार वाली बड़ी होनी चाहिए.
श्रीदत- अच्छा, तो सुनो लेकिन बड़ी या छोटी मैं नही जानता लेकिन यह तुम्हारे बहुत काम आएगी.
यशवर्धन- ठीक है दोस्त लेकिन तुम सुनाओ ना.
श्रीदत- ठीक है सुनो फिर, तुम जब भी कभी किसी अनजान व्यक्ति के घर मेहमान बनकर ठहरो और जब तुम्हारा बिस्तर लगा दिया जाए तो तुम उस बिस्तर पर सोने से पूर्व उस बिस्तर को समेटकर फिर पुन: साफ़ करके बिछाकर सोना.
यश- ऐसा क्यों?
श्रीदत- ऐसा इस लिए क्योंकि जो तुम्हारा बिस्तर लगाए क्या पता गलती सी उसमे कोई सूई या कुछ चुभने बाली वस्तु को ध्यान से ना देख पाएं इस लिए कहा. चल अब आगे बढ़ते हैं..
यश- बस इतनी सी बात है क्या?
श्रीदत- हाँ! मैंने पहले ही बोला ना की मुझे कहानी नहीं आती है. चलो अब आगे बढ़ते हैं.
श्रीदत ने फिर यश को एक छोटा सा कथन सुना दिया जो शायद उसके काम का नहीं था. वह निराश होकर उसका अनुसरण करता रहा. वे जैसे ही कुछ दूर पहुंचे. यश को बहुत ज्यादा थकान महसूस हो रही थी. उसके चलते हुए पाँव लडखडा रहे थे. वह कुछ ही कदम चला था की उसने श्रीदत को पीछे से आवाज देते हुए कहा- रुको दोस्त मैं अब बहुत थक गया हूँ. थोड़ी देर के लिए रुक जाओ ना.
श्रीदत- दोस्त मैंने तुम्हे पहले ही कह दिया था की हम नहीं रुक सकते.
यश- अच्छा तो कोई कहानी सुना दो..
श्रीदत- कहानी नहीं सुनाऊंगा. कथन सुना दूंगा. सुनना हो तो बोलो और बदले में सोने का सिक्का देना होगा.
यश- नहीं दे सकता. अब मेरे पास सिर्फ एक ही सोने का सिक्का बचा है अगर यही दे दिया तो फिर मैं व्यापार कैसे कर सकूंगा?
श्रीदत- तो ठीक है फिर आगे बढ़ते हैं.
ऐसा कहकर श्रीदत आगे बढ़ने लग जाता है. उसके चेहरे पर एक स्वार्थी मुस्कराहट थी चूँकि उसे पता था की यशवर्धन उसे कहानी सुनाने को बोलेगा. वे कुछ ही कदम चलते हैं की यश ने श्रीदत को आवाज देते हुए कहा- ठीक है दोस्त मुझे अब तो सुना दो कोई कथन या कहानी.
श्रीदत- लाओ सोने का सिक्का.
यश- वो दोस्त मैं तुम्हे बाद में दे दूंगा. तुम मुझे अभी कोई कथन कहानी सुना दो.
श्रीदत- नहीं दोस्त तुम पहले मुझे सोने का सिक्का दो उसके बाद ही सुनाऊंगा. वरना नहीं.
यश- अच्छा तो दोस्त पर इतना भी भरोसा नहीं.
श्रीदत- नहीं ये कोई दोस्ती की बात नहीं है यह अपने पेट और रोजी रोटी की बात है अगर घोडा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या?
श्रीदत के इतना कहते ही यश दुखी हो गया. उसने सोने का सिक्का निकाला और श्रीदत को बेमन से देते हुए कहा- ये लो अब तो सुना दो.
श्रीदत ने उस सिक्के को अपने पतलून में रख लिया अब व्यापारी पुत्र यशवर्धन के सारे सोने के सिक्के उसके पास आ चुके थे. उसकी चेहरे पर एक गजब की मुस्कराहट थी. उसने मुस्कुराते हुए कहा- अच्छा सुनो, तुम्हे जब भी कभी लगे की अब तुम चारो और से मुशिबतों से घिर चुके हो तो उन परेशानियों के आगे कभी हार मत मानना. कोशिश करना उस मुशीबत से लड़ने की क्योंकि समय बड़ा बलवान है. क्या पता जो तुम्हारा दुश्मन हो वो वक्त आने पर तुम्हारा दोस्त बन जाए इस लिए हर इंसान को साम, दाम, दंड और भेद इन चारों नीतियों के आधार पर हराने की कोशिश करना. वरना इस दुनियाँ मैं ना कोई तुम्हारा सखा है और न ही कोई तुम्हारा दुश्मन. ये सब तुम्हारे व्यवहार पर निर्भर करेगा. अगर तुमने मुश्किल समय में भी अपना आत्मविश्वास और हिम्मत नहीं खोई तो तू निश्चित ही कामयाब हो जाएगा. चल अब चलता हूँ.
यशवर्धन आश्चर्य से- कहा?
श्रीदत- अपने घर और कहाँ. मैंने तुम्हे जो ज्ञान देना था वो दे दिया अब मैं अपने घर जा रहा हूँ. मुझे अपनी पत्नी की बहुत याद आ रही है और तुम अपनी मंजिल की ओर बढ़ो.
यश- दोस्त ये क्या बात हुई? तुमने मुझे धोखा दिया है.
श्रीदत- हाँ! दोस्त हो सकता है की मैंने तुम्हे धोखा दिया है. लेकिन मैंने तुम्हे पहले ही कह दिया था की इस दुनिया में ना कोई दोस्त है और ना कोई दुश्मन. तुम आगे बढ़ो. इस दुनिया में तुम अकेले ही आए थे और अकेले ही जाओगे. और सुनो एक बात और तुम्हे मैं मुफ्त में बताता हूँ. स्वार्थी कौन है और कौन नहीं है? अगर इसका तुम्हे पता लगाना हो तो जान लेना की जो तुम्हे बुरे वक्त से निकालने के लिए दुनिया से भी लड़ जाए वो कभी स्वार्थी नहीं हो सकता इस लिए ऐसे इंसान का कभी साथ नहीं छोड़ना. चलो अब मैं चलता हूँ. भगवान तुम्हारी सहायता करेंगे. शुभ यात्रा. अलविदा दोस्त..
फिर वह यश को बीच रास्ते में छोड़कर वापस सृष्टिपुर की तरफ बढ़ जाता है तो यशवर्धन उसे पीछे से आवाज देते हुए कहता है. – मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी. दोस्त की तुम मुझे ऐसे बीच रस्ते में छोड़ जाओगे.
श्रीदत- दोस्त यही तो दुनिया की रीत है. किसी से उम्मीद मत करो क्योंकि जब उम्मीद टूटती है तो बहुत दुःख होता है चलो अब चलता हूँ.
श्रीदत यशवर्धन की बातो को अनसुना करके वापस चल पड़ता है और यशवर्धन दुखी होकर उसे देखता रहता है. श्रीदत उसके साथ ऐसा धोखा करेगा उसे पता नहीं था. श्रीदत ने बातो-बातों में उसके चारो सोने के सिक्के ले लिए थे. अब उसके साथ सिवाय उसके माता-पिता के आशीर्वाद के कुछ नहीं था. वह दूसरे नगर में बिना पैसों के कैसे व्यापार कर पाएगा इसका उसें बिलकुल भी पता नहीं था. वह हताश होकर एक पेड़ के नीचे बैठा जाता है. दोपहर हो चुकी थी. उसे कैसे भी करके शाम तक जंगल को पार करना था.

क्रमश....


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3 Comments

Dilawar Singh

15-Feb-2024 01:57 PM

बहुत खूब 👌अद्भुत👌 सुन्दर सृजन 👌👌

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Miss Lipsa

30-Aug-2021 03:17 PM

Wow

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🤫

13-Jul-2021 09:05 PM

वाह....!क्या बात है गुरु।अगले भाग की प्रतीक्षा में।

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